आईआईटी बीएचयू में ‘बोलती किताबों’ से छात्रों ने पढ़ी जीवन के संघर्ष और सफलता की गाथा

इंडिया व्यू के लिए जे. प्रकाश
वाराणसी। आईआईटी, बीएचयू के एमसीआईआईई सेंटर में लीडरशिप समिट का आयोजन किया गया था। जिसमें देश भर से अलग-अलग क्षेत्र में काम कर रहे लोगों ने हिस्सा लिया और अपने अपने संघर्ष और सफलता की दास्तां को साझा किया। ताकि छात्रों में ऊर्जा का संचार हो और एक बदलाव की दिशा में काम कर सकें। सभी अतिथियों को आईआईटी, बीएचयू के एमसीआईआईई के प्रमुख प्रो. पीके मिश्रा ने स्मृति चिंन्ह प्रदान किया। जबकि कार्यक्रम का संयोजन एटीई वर्ल्ड टॉक के सीईओ आयुष केशरी ने किया। संचालन सत्येंद्र यादव और व्यवस्था सनी कुमार ने संभाला था। कार्यक्रम के आयोजनकर्ता आयुष केशरी ने बताया कि ‘ह्यूमन लाइब्रेरी’ एक परिकल्पना है। जिसका यह छठवां अंक था।
समिट में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग प्रोग्राम सर्विस की डॉ. रत्ना पुरकायस्थ, एडवांटेज ग्रुप के संस्थापक खुर्शीद अहमद, पुरानी किताबों को गांव से जोडने वाले एवं पत्रकार जय प्रकाश मिश्र, सिद्धार्थनगर जिले के हसुड़ी औवसानपुर के प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी, तीन बार वर्ल्ड रिकार्ड बनाने वाले योगाचार्य रवि झा, टिक टॉक पर मशहूर डॉ. अनिमेष, इंपेरियल कॉलेज, बेगलूरू के डॉ. हरि मोहन मारम आदि ने अपने संघर्ष की कहानी से छात्रों में एक नई आस जगाई है।
कार्यक्रम में कई ऐसे भावुक क्षण आए। जब पूरे सभागार के लोगों की आंखें भर आईं। कुछ देर के लिए एक दम सन्नाटा सा फैल जा रहा था। मानो जैसेे श्रोता , वक्ताओं के साथ उनके जीवन संघर्ष में गोताे लगा रहे हों…।
डॉ. पुरकायस्थ ने कहा कि आज जो मैं हूं वह एक लंबे संघर्ष के बाद मिल पाई है। लेकिन, मेरे जीवन में ऐसे भी दिन रहें हैं जब मुझे पटना कॉलेज में दाखिले को छोड़ना पड़ा और नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई पूरी करनी पड़ी। लेकिन, मैंने हार नहीं मानी। नाट्यकर्म में मेरी रूचि थी और बिहार से एनएसडी पहुंचने वाले उस समय की एक मात्र लड़की बनी। उन्होंने कहा आप अपने लक्ष्य को तय कीजिए और चलते जाइए।
खुर्शीद अहमद ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं 20 रूपये लेकर चला था। आज करीब 200 करोड़ की कंपनी है। मेरे साथ संघर्ष का अटूट संबंध है। कभी घबराया नहीं। एक समय था जब मुझे मकान तक बेचना पड़ा था। और आज वह सबकुछ है जो मैंने चाहा था। आपको अपने सपने के लिए कठिन परिश्रम करने होंगे।
हसुड़ी औवसानपुर के प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी ने छात्रों को अपने जीवन संर्घष की दास्तां साझा करते हुए कहा कि मेरी माता जी के साथ एक दुखद घटना हुई और मां चल बसीं। लेकिन, अंतिम समय में उन्होंने हमें बचन दिया कि बेटा इस गांव के लिए तुम जरुर कुछ करना। श्री त्रिपाठी मां को याद करते हुए कई बार भावुक भी हो गए। सारे सभागार में लोगों के आंसू छलक गए। उन्होंने कहा कि जिस में का इलाज के अभाव में अंत हो गया। आज उऩ्हीं की स्मृति में आधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल की बुनियाद रखी गई है। गांव में सुरक्षा के हिसाब से सीसीटीवी कैमरे लगें हैं। पब्लिक एड्रेस सिस्टम लगाए गए हैं। सड़कें पक्की हो गई हैं। गांव को महिलाओं के नाम समर्पित करते हुए पिंक कलर से रंग रोगन किया गया है गांव की जीआईएस मैपिंग की गई और अभी बहुत कुछ होना बाकी है।
पत्रकार एवं पुरानी किताबों को सहेजने वाले जय प्रकाश ने कहा कि अगर आपके अंदर जोश, जुनून और जज्बा हो तो कुछ भी असंभव नहीं हैं। पुरानी किताबों से भी गांव की जिंदगी बदली जा सकती है इसकी परिकल्पना को हमनें सच करके दिखाया है। एक बेहतर नौकरी छोड़कर पुरानी किताबों को इकठा करना शुरू किया। आज हजारों की संख्या में पुस्तकें हैं। करीब आठ लाइब्रेरी की रचना हुई है। यह सबकुछ संभव हुआ है। कठोर परिश्रम और दृढ़ इच्छाशक्ति से।
डॉ. अनिमेष ने कहा कि मेरी पूरी पढ़ाई दिल्ली के सफदरगंज और डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल से हुए। लेकिन, अचानक से एक दिन एक मरीज से मिलने के बाद मेरी दुनिया बदल गई। मुझे लगा कि देश में अभी चिकित्सा के क्षेत्र में जागरूकता का अभाव है। उन्होंने उसके बाद सोशल साइट्स पर तमाम बीमारियों को लेकर जागरुकता का कार्यक्रम चलाना शुरू कर दिया। आज टिक-टॉक साइट पर काफी मशहूर लोगों में से एक हैं। इनके मैसेज दूर दराज के गांवों तक पहुंच रहे हैं।
योगाचार्य रवि झा ने अपने संबोधन में कहा कि अनुशासन से बड़ा कोई मंत्र नहीं है। आप जिस भी कर्म में हैं उसमें सौ फीसदी ईमानदार रहिए। आपको जरूर सफलता मिलेगी। योग से जीवन को सरस बना जा सकता है।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन सनी कुमार ने किया।
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